मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

बिन्दी

बिन्दी .....
सुख का ,
सौभाग्य का ,
सुहाग का ,
चिन्ह दुलार का ,
देखा सबसे पहले कहां !
याद आता है वो...
प्यार भरा
दुलार बरसाता
हौसला बढाता
चेहरा मां का  !
जन्म के साथ ही
नजर टीका लगाने को
पास आया प्यार से
उमगता चेहरा ..
वो नन्हे हाथों का .
बढ कर थामने को
चमकते सूरज सी
मां की बिन्दी...
थोडा बडा होते ही
उस बिन्दी को
खुद पर सजाने को
ललकता बाल मन
उस चाहत पर मां की
आश्वस्त करती थपकी
आज मां के नहीं होने पर भी
उन के आशीष सी
दमकती मेरे माथे पर बिन्दी !
उस माथे से इस माथे पर
दमकती बिन्दी
जैसे सफ़र हो  ,
आशीष हो ,
एक पीढी से
दूसरी पीढी को ..
बेशक बिन्दी
का आकार बदला
बडी से छोटी होती गयी
सुख की
सौभाग्य की
भावना वही रही !
इसीलिये आज याद
आता है मां का बिन्दी से
चमकता चेहरा
जहां सबसे पहले देखी
खिलखिलाती बिन्दी.......!

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर शब्दों में बिंदी के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त कीं हैं.बिंदी सिर्फ बिंदी ही नहीं होती ये उस असाधारण शून्य का भी प्रतीक है जहाँ से हम अपना सफ़र शुरू करते हैं और एक मुकाम तक तक पहुँच कर ही रहते हैं.

    बहुत अच्छी लगी ये कविता.

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  2. आज तक नहीं पढ़ी थी
    बिंदी पर कविता /
    बहुत सुंदर ....
    मेरे ब्लॉग पर भी पधारे /
    http://babanpandey.blogspot.com

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  3. बबन पान्डेय जी मेरे ब्लॉग पर आने के लिये धन्वयाद ।

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  4. खूबसूरत विवरण बिन्दी का.. उसकी महत्ता का..
    लिखते रहें..

    "एक लम्हां" पढने ज़रूर आएं ब्लॉग पर..

    आभार

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  5. बहुत सुन्दर और प्यारी कविता..बधाई.
    'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.

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  6. अच्छी लगी बिंदी पर आपकी ये कविता..........

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  7. शिखा जी के ब्लॉग से आपके ब्लॉग पर कूदा हूं......आते ही बिंदी कि सुंदर कविता। इत्ती छोटी सी बच्ची और इत्ती अच्छी कविता .....बहुत सुंदर.....

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  8. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...

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  9. अच्छी कल्पना शक्ति पायी है ! बिंदी में माँ को ढूंढना अच्छा लगा ......लगता है वे बहुत स्नेही रही होंगी !
    शुभकामनायें !

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