रविवार, 27 मार्च 2011

नन्हा सा बीज .......

एक नन्हा सा बीज 
हवा के झोंके से लहराता 
बिजलियों की चमक से घबराता 
बादलों में थिरकता 
बारिश की बूंदों में तैरता 
जा पहुंचा इक बाग़ में 
समय के थपेड़ों से अंकुरित हो 
था मगन अपने ही आप में
कभी फलों को परखता  
कभी फूलों को निरखता
सहज स्नेहिल सा पल्लिवत होता 
नन्हें-नन्हें पक्षियों ने किया बसेरा 
कलरव सुन-सुन हुआ  मगन 
पंछियों के आने-जाने की  
चंचल अठखेलियों में 
भूला प्रकृति का नियम 
एकाकी शुरू किया जीवन 
परिधि हुई पूरी 
हुआ फिर अकेला 
पंछी उड़ चले नए 
आसमान की ओर 
वृक्ष कभी उदास 
कभी मगन 
देखता उनकी परवाज़ 
देता आशीष ,मांगता दुआ
उनके नन्हे पंखों के नए दम-ख़म की 
आती आंधियां अपने पत्तों शाखाओं को 
समेटता सहेजता टिकने की कोशिश में 
बचाने को उनके मूल बसेरे को 
मांगता वक़्त नियति से इतना ही 
दृढ हो जाए उनके पंख 
पा जायें निर्मल धरती 
एक स्वच्छ आसमान .........
                  -निवेदिता 

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत प्यारी -सी कामना है ...
    सुन्दर रचना !

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  2. वात्सल्य रस से ओत-प्रोत सुन्दर रचना....

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  3. आती आंधियां अपने पत्तों शाखाओं को
    समेटता सहेजता टिकने की कोशिश में
    बचाने को उनके मूल बसेरे को
    मांगता वक़्त नियति से इतना ही
    दृढ हो जाए उनके पंख
    पा जायें निर्मल धरती
    एक स्वच्छ आसमान .........
    अच्छी कविता. शुभकामनाएँ ...

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  4. न जाने कितनी आशायें और संभावनायें समेटे अपने अन्दर। सुन्दर कविता।

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  5. बीज के माध्यम से एक बच्चे के मनोभावों को खूब उकेरा है आपने। पीड़ा तो तब होती है जब जड़ से उखड़ कर रोपा जाता है पौधा किसी दूसरे बाग में।

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  6. आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद ....
    @देवेन्द्र जी ,पौधों की किस्मत में तो जड से उखड कर कहीं और रोपा जाना ही होता है । अनुकूल वातावरण मिलने पर पनप जाता है ,अन्यथा अतीत हो जाता है ....

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
    शुभ कामनाएं

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  8. तमाम कामनाओं से लबरेज़ अच्छी कविता.

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  9. kamna bahut pyaari ... is pyaari kamna tak pahunchne ka pata amit ji ne diya to aaj daant ke saath muskura dijiye aur haan wahan kitna sach hai aur jhuth - wo to kahiye hahaha

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