सोमवार, 9 जनवरी 2012

इस मन को समझ तो लो ....




इस विरल गरल को तरल बना
पान का कैसा अभिमान किया
नीलकंठ का खुद को नाम दिया
विषपान से कंठ ही बनेगा नीला
पर नीलकंठ महादेव बनने को
जटा में गंगा ,मस्तक पर चन्द्र
कलाई और गले में वैसा सर्पहार
ससम्मान धारण करना होगा
मन के इस जग के कालेपन को
अवधूत मलंग सा सजाना होगा
महानता के मौन का अभिनय
कितना अस्वीकार्य अजनबी है
नीलकंठ तो तुम बाद में बनना
पहले इस धरती पर साधारण
आम इंसान बन सहज जी लो
विषपान करना बहुत सहज है
इस जीवन के काँटों से सजे हुए
धतूरे की विषबेल को संवार लो
महादेव का अभिनय आसान है
एक बार साधारण मानव बन
इस मन को समझ तो लो ....
                                  -निवेदिता 

19 टिप्‍पणियां:

  1. सरल गरल पी तरल हो रहा,
    शेष विश्व निश्चिन्त सो रहा।

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  2. साधारण या असाधारण .... मन को समझने के लिए मन होना ज़रूरी है

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  3. भोलेनाथ की महिमा के साथ साथ आधुनिक उद्धारकों पर कटाक्ष.
    एक बेहतरीन प्रस्तुति.
    शुभकामनायें !!
    बारामासा की नयी पोस्ट पर प्रतिक्रिया वांछनीय है.

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  4. ek dam sach kahti hui kavita
    pahle insaan banana jyada jaruri hain

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  5. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  6. सच है इंसान बनना बहुत कठिन है आज ... अच्छी रचना है ...

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  7. वाह क्या कहा है की विषपान करना तो सहज है पर इस ज़िन्दगी से टक्कर लेना मुश्किल..
    वैसे लोगों के लिए है जो आत्महत्या करने की सोच रहे हैं.. आम इंसान बनना ही मुश्किल हो चला है.. सत्य है!
    अच्छा लगा..

    आभार
    प्यार में फर्क पर अपने विचार ज़रूर दें...

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  8. सुन्दर रचना..मकर संक्रांति की शुभकामनायें.

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  9. महानता के मौन का अभिनय
    कितना अस्वीकार्य अजनबी है....

    सच कहा आपने....

    बहुत सुन्दर कविता !

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  10. बहुत ही सार्थक व सटीक लेखन| मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  11. Nivedita ji
    i am fond of hindi literature. i write blogs too but in English because for expressing my thoughts , i don't know hindi typing. but i like hindi literature too much. your all compositions are very nice

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  12. अब शंकरजी को जबाब नहीं सूझ रहा होगा। :)

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