शनिवार, 28 सितंबर 2013

मेरे दुलरुआ आज तुम्हारे जन्मदिन पर .....


                              ये है हमारा छोटा बेटा अभिषेक और आज इसके जन्मदिवस पर एक दुआ  …. 


दुआ है
तुम्हारे लिये
और हाँ ....
तुम्हारे उन सभी
अपनों के लिए
कभी भी
तुम्हे जरूरत
न हो
किसी की
दुआओं की .........

आँखों को
हसरत न रहे
नींद की
चाहतें जब
अधूरी न रहें
नींद तो
अपनेआप ही
समा जायेगी
इन प्यारी आँखों में ...........

हर ऊँचाई
चूमे कदम तुम्हारे
बस उन
ऊँची ऊँचाइयों से
देख लेना
अपने अपनों को
और हाँ ...
दुनिया के सभी
जरुरतमंदों को भी !!!
                        …… तुम्हारी माँ ....... मम्मा   :)

रविवार, 22 सितंबर 2013

एक बरसात कुछ अलग सी ……


मेरे  
सपनों की 
बालकनी में 
आवाज़ देते 
तुम  ……

तुम्हारी 
यादों की 
बारिश में 
भीगती 
मैं  ……. 

हमारे 
दरमियाँ 
भाप से 
धुंधलके का 
अनजानापन  ……

अजीब सी है 
ये रिश्तों की 
गहराती दलदल 
आओ डूब कर 
कहीं दूर मिल जायें …… 
                            -निवेदिता 

रविवार, 15 सितंबर 2013

न बह जाएँ ……






ये आँसू 
बड़े ही 
धोखेबाज़ हैं 
जब जी चाहे 
अपनी सी 
कर ही  जाते हैं 
थामना चाहूँ 
तब भी 
थिरक कर 
बिखर जाते हैं 
पर आज  
सोचती हूँ 
इन आँसुओं को 
पलकों की ही 
कैद में रख लूँ 
कहीं बहते हुए 
आंसुओं संग 
तुम्हारी झलक 
या कह दूं
कसकती 
खिलखिलाती  
तुम्हारी यादें 
तुम्हारी बातें 
भी न बह जाएँ  …
                     - निवेदिता 

सोमवार, 9 सितंबर 2013

चाहत एक अजीब सी ……



चाहा था 
तुम्हे थोड़ा 
कम ही चाहूँ 
पर  …… 
रोक न सकी 
खुद को 
और तुम 
तुमने तो बस 
एक भी पल 
न लगाया 
राह बदलने में 
शायद तुम थे 
कम चाहत लायक 
और हाँ ……. 
मैं भी थी 
कम  …… बहुत कम 
पीड़ा पाने लायक  ……. 
पर 
शायद 
ये तो एक उलझन है 
दिल और दिमाग के बीच 
दिमाग तो 
तुमको छोड़ 
आगे बढ़ जाना चाहता है 
पर 
ये दिल  …
ये तो बस तुम्हे ही 
अपनी साँसों में 
यादों में बसाना चाहता है  ……
                                      - निवेदिता 

शनिवार, 7 सितंबर 2013

आस और प्यास




एक आस हर पल 
थामती हैं साँसें 
इस आस में छुपी  
एक अनबुझी सी 
प्यासी प्यास भी है  
आस की प्यास 
जगाती रहती है 
प्यास की आस
आस और प्यास 
कितनी और कैसी हैं 
सुलझी हुई उलझन
ये उलझन जलाती 
उम्मीदों के दिए
कालिमा से भरे 
अँधियारों के उजाले  
सोचते 
न प्यास की आस 
बुझती  …. 
न आस की प्यास 
भरती  …
सच 
कैसी अजीब सी 
ये प्यासी आस है  ……
                 - निवेदिता 

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

इखरे - बिखरे - निखरे आखर ( ३ )


नज़रों के सामने है अथाह जल राशि ,अपनी सम्पूर्ण भयावहता से असीमित विस्तार को भी सीमित करती … मन बावरा भटका सा अटका सा ,जैसे विराम का कोई  नन्हा  सा  लम्हा तलाशता ऊपर जैसे ईश्वर की आस लिए निगाहें फेरता है ,पर वहाँ भी आकाश अपनी ओर - छोर हीन विपुलता लिए सूर्य - चाँद - सितारों की सज्जा की चमक लुटाता , निगाहों को ठगे जाने की शिकस्त का बोध करा रहा है … 

निगाहें फिर से व्याकुल सी जल को देखतीं हैं ,पर उसकी गहराई भी नहीं थाह पा रहीं हैं … मन - प्राण एक तिनके सा हवा के झोंकों के वशीभूत ,अजनबी सी यात्रा पर निकल पड़ा है … लगता है आज पंच तत्वों ने अजीब सी साज़िश रच ली है ,अपनी सम्मिलित शक्ति के प्रबल आवेग से तिनके का और भी रेशा निकाल उसका अस्तित्व ही समाप्त करना चाहते हैं …

वो रुक्ष सा तिनका तलाश रहा है अपने आत्मिक बल ,उन दो नन्हीं चितवन को ,जो उसके क्षीण से कलेवर के समक्ष दृढ़ स्तम्भ सरीखे कवच सी छा जातीं हैं … हर आता हुआ लम्हा ,कभी तीक्ष्ण सी चुनौती बन तो कभी एक आस के दीप स्तम्भ सा जगमगा जाता है … 

आसमान की विशालता जैसे उस तिनके के इरादों की अडिगता को परख रहीं हो ,तो जल की गहराई उसके विश्वास की सीमाओं को समेटने के लिए और भी नीचे उतरती जा रही हो …

तिनके के इस अडिग प्रयास के पीछे का मूल तत्व उसका एकमात्र विश्वास है कि उसकी उपस्थिति के बिना ये सृष्टि अपूर्ण ही रह जायेगी … बेशक एक तिनके भर ही ,पर पूर्ण रूप से सम्पूर्ण हो पाना सम्भव ही नहीं और नि:संदेह यही उस तुच्छ और रुक्ष से तिनके की शक्ति है और उखड़े मन के भटके से ख्याल भी ……                                                                                                            - निवेदिता