सोमवार, 21 मार्च 2016

21 मार्च 2016 .....

कभी मना कर रूठ जाते है वो 
कभी यूँ भी रुठ कर मनाते है

जो हार जाये वो प्यार क्या 
तकरार न हो  इजहार क्या 

नजरों से  नजरें चुराते है वो 
यूँ ही दिल में बस जाते है वो 

न कुछ  हारते हैं ,न जीतते है 
प्यार ही प्यार में जिये जाते हैं  ..... निवेदिता 

बुधवार, 16 मार्च 2016

स्ट्रेस बतर्ज वैक्यूम ......

का ," सुनो तुम कुछ दिनों से स्ट्रेस्ड दिख रही हो  .... क्या हुआ  .... "
की ,"हम्म्म  .....  नहीं तो  .... "

कुछ दिनों बाद फिर से यही बातें  ..... 
का ," सुनो तुम अभी भी स्ट्रेस्ड दिख रही हो  .... क्या हुआ  .... "
की ,"हम्म्म  .....  नहीं तो  .... " 



शाम को ऑफिस से लौट कर चाय पीते हुए  ..... 
का ,"सुनो  .... एक बात बोलूँ  ... "
चाय के कप में बेमतलब सी चम्मच हिलाते हुए की ने का को देखा ,"अब क्या हुआ  .... "
का ,"मैं आज ऑफिस से लौटते हुए बाजार चला गया था  .... "
की आखों में बिना किसी प्रतिक्रिया लिये निरपेक्ष सी ,बस का को देखती है  ... 
का ,"मैं तुम्हारे लिए कुछ लाया हूँ ,देखोगी  .... "
की निर्विकार सी ,"ह्म्म्म्म  ..... "
का हड़बड़ाया सा एक गेंद सी की की तरफ बढ़ाते हुए ,"ये लो  .... "
की ,"अब मैं इसका क्या करूंगी  .... मैं तो अब खेलती नही और बच्चे ,वो तो  ...... "
की का वाक्य अधूरा सा रह गया  ...... 
का ,थोड़ी सी उलझन में ," सुनो न ये स्ट्रेस बस्टर है  .... इसको तुम यूज़ करोगी तो तुमको बेहतर लगेगा  .... "
की शांत थी ," नहीं मुझे कोई स्ट्रेस नही है  .... "
का ," फिर तुम इतनी उदास सी  ..... "
की ,"नहीं मुझे कोई स्ट्रेस नही है ,बस वैक्यूम .... "
की चाय के कप किचेन में रख कर बालकनी में पक्षियों को तलाश रही है  .... 
और  ..... 
वो स्ट्रेस बस्टर का के हाथों में है  ..... निवेदिता 

मंगलवार, 15 मार्च 2016

नयन सरिता ....

आँसू और पलकों का 
ये कैसा भीगा सा नाता है 
एक बिखरने को बेताब 
तो दूजा समेटने को बेसब्र 
ये बेताबी और ये बेसब्री 
ये बिखराव और ये सिमटन
दिल की आती जाती साँसों सी
धड़कन को भी सहला जाती
आँसुओं का दिल लरजता
उनकी अजस्र धारा बुझा न दे
पलकों के चमकते दिए
पलकें थमकती है कहीं
राह थम न जाए और
सूख न जाए नयन सरिता .... निवेदिता