शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

ये अंतिम सांस ....

अरे ! तुम आ गए 
पर अब क्यों आये 
अब इस सांसों के 
थमने की घड़ी में 
तुम्हारा आना भी 
बड़ा ही बेसबब है
सच अब यूँ आना
भी न थाम सकेगा
मेरी टूटती सांसों की
थरथराती सी डोर
हाँ ! चाहा था मैंने
तुम्हे पूरी चाहत से
अपने जीवन के हर
काले उजले पल में
तुम तो थे जीने की आस
चलो ... मुक्त करो मुझे
मुझे जीने दो मेरी
बस ,ये अंतिम सांस .... निवेदिता

मंगलवार, 12 जुलाई 2016

मन बावरा भटक जाता है ......


हर कदम पर
ज़िन्दगी मुझसे
और मैं भी
ज़िन्दगी से
सवाल पूछ्तें हैं

इन सवालों के
जवाब तलाशती
राहें भी कहीं
अटक सा जाती हैं
नित नये सवालों की
उलझनें सुलझाती
और भी उलझती सी
मन के द्वार तक
दस्तक नहीं दे पातीं
एक अजीब सा
सवाल जगा जातीं हैं
हम वो सवाल भी
क्यों हैं पूछते ,
जिनके जवाब
हम देना नहीं चाहते
शायद सवाल तभी
जाग पातें हैं
जब जवाब देने का
ज्ञान कहीं सो जाता है
अनजानी-अनसुलझी
वादी में मन बावरा
भटक जाता है ......... निवेदिता
1

रविवार, 10 जुलाई 2016

10 / 07 / 16



बात में ही कोई बात होगी 
यूँ न साँसे अटक पाएंगी 
सवाल करती साँसे भी 
एक पल को ही सही 
कहीं अटकी तो कहीं 
भटक भी गईं होंगी 

मुझे देखो न अब क्या करूँ 
बड़ी ही ईमानदार से की थी  
एक कोशिश याद करने की 
कुरआन की वो आयतें 
पर तुम याद आ गये 
और  ....... 
मैं तो बस मर ही मिटी  ..... निवेदिता